जनिये दुनिया के पहले परिवहन का साधन
क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में सबसे पहला परिवहन का साधन क्या था। सडक, रेल परिवहन, वायु या जल परिवहन। जैसे घोडागाडी, बैलगाडी, सायकल, रेल, नाव या फिर हवाई जहाज। आपको जानकर यह हैरानी होगी कि दुनिया में सबसे पहले जल परिवहन को चुना गया था, इसमें सबसे अच्छा और सस्ता परिवहन का साधन था नाव। जल परिवहन का प्रमुख साधन नाव कई खूबियां समेटे हुये है आइये जानते नाव के बारे में रोचक जानकारियां जिसके बारे में शायद भी कभी सुना या पढा होगा।
नाव दुनिया का पहला परिवहन यातायात का साधन है, नदी के मार्ग में इंसान सुरक्षित होता है। उसमे कोई खतरा नही है। इतना ही नही जलीय जीव, सांप, बिच्छू, मगर भी नही आते है। लक्ष्मी की प्रतीक मानी जाती है और यह मछली के आकार की होता है। लकडी से बनी नाव सबसे बेहतर मानी हाती है ये लकडी सरई और जामुन की होती, यह लकडी पानी में ना तो सडती है और ना ही गलती है। सबसे छोटी नाव 6 फिट की होती है जबकि 13 फिट की नाव को दोष माना जाता है इसलिए 13 फिट की नाव का निर्माण नही होता। नये निमार्ण के समय नाव को नदी में पट कर रखा जाता है। नाव के अलावा नौका, वोट और किश्ती हम नाव को कहते है। नारियल धूप सिंदूर से पूजा छोटी दीवाली के दिन नाव की पूजा होती है, नाविक की पूंजी नाव लक्ष्मी होती। इसीलिए मान्यता है कि नाव की नाल से भूत प्रेत नही आते है यही वजह है कि इसकी कील लोग अपने पास रखते है। नाव के अलावा नाव के मूडे की ओर पूजा होती है और उतारा पीछे की तरफ से होता है। इसीलिए नाविक हमेशा मूडे की ओर बैठता है और चप्पू से पानी को खेता है। चप्पू को भी कई नामो से पूकारा जाता है। इसमें प्रमुख रूप से सुरहिया, किरवारी पतवार, सोरहा कहा जाता है।
अब जानते है नाव को चलाने वाले नाविक की खाशियत
नाव को नाविक चलता है, नाव चलाने वाला सामने नही पीछे देखकर चलाता है हम कह सकते है उल्टी डायवरी नाविक करता है। नाविक नदी में भॅंवर से हमेशा दूर होते है। नाव डूबने पर सबसे पहले नाविक कूदता है और उफनती नदी में नाविक नाव लेकर कभी भी नही जाते है। ये खप्पड जला कर नाव और नदी की पूजा करते है। नाविक काली भक्त होते है इन्हे नाविक कर्णधार, खेबनहार, किश्तीवान, मल्हाह, मांझी, निशाद, नावडा, खेवट, केवट, माहीगीर कहते जाते है। फांसी देने वाले ही मल्लाह, मांझाी के ही लोग होते है जिन्हे जल्लाद कहते है ये सभी काली को समर्पित होते है और फंदा से मारते है। जिस मल्लाह के बेटे-बेटियो को तैरना आना आता उनकी शादी नही हो पाती है। माथे की बिन्दी मांझी समाज की देन मानी जाती है, गले में सुतिया और मछली के चिन्ह वाली के बिना शादी नही होती। माझी समाज का प्रतीक धनुष बाण होता है। मल्लाह कभी भूखे नही मरता, ये हमेशा मछली मारते है और पानी सूखने पर ककडी, खीरा, तरबूत की खेती कर लेते है।
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